कभी सोचा है, इंतज़ार कैसा होता है? मैं यहाँ महीनों या हफ़्तों वाले इंतज़ार की बात नहीं कर रहा। मैं उस इंतज़ार की बात कर रहा हूँ जो पूरे 364 दिन चलता है, सिर्फ एक दिन के लिए। एक दरवाज़े के खुलने का इंतज़ार, एक झलक का इंतज़ार, एक अनुभव का इंतज़ार जो सिर्फ 24 घंटों के लिए ही मुमकिन है।
मैं बात कर रहा हूँ उज्जैन की, बाबा महाकाल की नगरी की, और उनके मंदिर के शिखर पर बसे एक ऐसे रहस्य की जिसका नाम है नागचंद्रेश्वर मंदिर।

यह कोई आम मंदिर नहीं है। यह महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित एक ऐसा स्थान है, जिसके दरवाज़े सिर्फ और सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलते हैं। मैं जब पहली बार इस परंपरा के बारे में सुना, तो यकीन नहीं हुआ। ऐसा क्यों? क्या है इस दरवाज़े के पीछे? यही सवाल मुझे खींचकर उज्जैन ले गए, और जो मैंने वहां महसूस किया, वो शब्दों में बयां करना मुश्किल है, पर कोशिश ज़रूर करूँगा।
वो एक झलक, जिसके लिए दुनिया तरसती है
नागपंचमी की रात… घड़ी में जैसे ही 12 बजते हैं, महाकाल मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक हलचल होती है। मंत्रोच्चार के बीच, साल भर से बंद पड़े दरवाज़े खुलते हैं। हज़ारों लोगों की भीड़, लाखों धड़कनें और सबकी आँखों में बस एक ही उम्मीद – नागचंद्रेश्वर के दर्शन।
जब आप अंदर झाँकते हैं, तो एक ऐसी प्रतिमा दिखती है जो आपने दुनिया में कहीं नहीं देखी होगी। यह नेपाल से लाई गई एक अद्भुत मूर्ति है। यहाँ भगवान शिव किसी बाघ की खाल या नंदी पर नहीं, बल्कि एक विशाल सर्प के आसन पर विराजमान हैं। उनका पूरा परिवार – गणेश जी, माँ पार्वती, कार्तिकेय – सब उनके साथ हैं, और उन सब पर छत्र की तरह छाया कर रहा है सात फनों वाला नागराज।
जब मैंने पहली बार यह दृश्य देखा, तो एक पल के लिए मैं सब कुछ भूल गया। यह सिर्फ एक मूर्ति नहीं, एक कहानी है। यह विनाशक (शिव) और सृजन (नाग) के संतुलन की कहानी है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। विशेषज्ञों की बातें किताबों में रह जाती हैं, पर यहाँ आकर उस बात का असली मतलब समझ आता है।
क्यों होता है यह चमत्कार सिर्फ एक दिन? एक पौराणिक वादा
अब सवाल उठता है कि यह दरवाज़ा साल भर बंद क्यों रहता है? इसके पीछे एक बहुत ही सुंदर कहानी है, एक वादा है।
कहते हैं कि सर्पों के राजा, तक्षक, ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिव जी प्रसन्न हुए और उसे अमरत्व का वरदान दिया। तक्षक ने शिव जी के सानिध्य में ही वास करने की इच्छा जताई। लेकिन भगवान शिव, जो अक्सर गहरे ध्यान में रहते हैं, उन्हें एकांत प्रिय है।
तो तक्षक ने यह वचन दिया कि वह साल में सिर्फ एक दिन, नागपंचमी पर, अपने आराध्य से मिलने आएगा और उसी दिन भक्त भी उनके इस रूप के दर्शन कर सकेंगे। बाकी समय, भगवान शिव अपने एकांत में रहेंगे। सोचिए, एक भक्त का अपने भगवान के एकांत के प्रति कितना सम्मान है! और उज्जैन आज भी उस वादे को निभा रहा है।
यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, एक एहसास है
नागचंद्रेश्वर मंदिर जाना सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है। यह समय में पीछे जाने जैसा है। यह उस विश्वास को महसूस करने जैसा है जो हज़ारों सालों से ज़िंदा है। जब आप महाकाल मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़कर तीसरी मंजिल तक पहुँचते हैं, तो आप सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारत पर नहीं चढ़ रहे होते, आप आस्था की एक ऐसी ऊंचाई पर पहुँचते हैं जहाँ दुनिया का शोर नीचे रह जाता है।
नागपंचमी के दिन यहाँ का माहौल देखने लायक होता है। लाखों लोग, बिना थके, घंटों तक लाइन में खड़े रहते हैं, सिर्फ एक पल की उस दिव्य झलक के लिए। उस भीड़ में कोई अमीर-गरीब, बड़ा-छोटा नहीं होता। सब सिर्फ भक्त होते हैं, और सबकी आँखों में एक ही श्रद्धा होती है।
अगर आप कभी जीवन में उस भक्ति, उस ऊर्जा और उस अद्भुत कला को महसूस करना चाहते हैं, तो एक बार नागपंचमी पर उज्जैन ज़रूर आइएगा। ट्रेन, बस, फ्लाइट सब आपको इंदौर तक ले आएँगी, और वहाँ से उज्जैन बस एक घंटे की दूरी पर है।
यह एक ऐसा अनुभव है जिसे आप कभी नहीं भूल पाएंगे। यह एक कहानी है जिसे आप हमेशा सुनाना चाहेंगे। क्योंकि नागचंद्रेश्वर मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, यह एक जीवित वादा है, जो हर साल नागपंचमी पर निभाया जाता है।
निसार मिशन लॉन्च: सैटेलाइट श्रीहरिकोटा से 5:40 बजे उड़ान भरेगा
नागचंद्रेश्वर मंदिर विशेष है क्योंकि यह केवल साल में एक बार नाग पंचमी के दिन 24 घंटे के लिए खुलता है। यह दुर्लभ घटना भक्तों द्वारा अत्यधिक इंतजार की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सांपों या नागों को भगवान शिव से गहरे जुड़ा हुआ माना जाता है, जो उन्हें आभूषण के रूप में धारण करते हैं।
यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के तीसरी मंजिल पर स्थित है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें भगवान शिव के साथ नाग की पूजा की जाती है। डॉ. विष्णाथ शर्मा, एक प्रसिद्ध इतिहासकार और धार्मिक विद्वान के अनुसार, नागों का शिव से संबंध प्राचीन धार्मिक ग्रंथों और भारत के मंदिरों में पाए गए शिल्पों में देखा जा सकता है। इस मंदिर की स्थान और परंपरा इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाती है।
Image Credit:श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति, Ujjain and x